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करेले की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

करेले की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

हरदोई के किसान का कहना है, कि 1 एकड़ भूमि पर करेले की खेती करने पर तकरीबन ₹30000 तक का खर्चा आता है। किसान को बेहतरीन मुनाफे के साथ करीब ₹300000 प्रति एकड़ का लाभ होता है। 

 करेले की खेती से किसान शीघ्र अमीर बन सकते है। किसानों की सफलता की यह कहानी, बाकी किसानों को भी करेले की खेती की ओर आकर्षित कर रही है। 

असल में उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद के किसान करेले की खेती से अच्छा-खासा लाभ अर्जित कर रहे हैं। परंतु, करेले की खेती से फायदा कमाने की कहानी की पटकथा के पीछे खेत तैयार करने की महत्वपूर्ण भूमिका है। 

आईए जानते हैं, कि करेले की खेती करने वाले किसानों की सफलता की कहानी और उन्होंने किस प्रकार खेत तैयार किए, जिससे करेले की खेती से वह मोटा मुनाफा कमाने में सफल हो पाए।

जाल निर्मित कर करेले की खेती की शुरुआत की

हरदोई जनपद के किसान आजकल खेत में जाल बनाकर करेले की खेती कर रहे हैं, जिससे किसानों को करेले की खेती में लाखों का मुनाफा अर्जित हो रहा है। हरदोई के ऐसे ही एक किसान संदीप वर्मा हैं, जो कि गांव विरुइजोर के निवासी हैं।

वह बहुत वर्षों से करेले की खेती करते आ रहे है, उनका कहना है, कि उनके पिताजी भी सब्जियों की खेती किया करते थे। 

सब्जी की खेती गर्मी एवं बरसात के दिनों में बेहद मुनाफा देती है। साथ ही, यह खेती सप्ताह अथवा 15 दिन में किसान की जेब में रुपए पहुंचाती रहती है।

संदीप की देखी-देखा रिश्तेदारों ने भी की करेले की खेती शुरू

किसान संदीप वर्मा का कहना है, कि करेले की फसल की उत्तम पैदावार के लिए 35 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त माना जाता है। साथ ही, बीजों के गुणवत्तापूर्ण जमाव के लिए 30 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त होता है। 

किसान ने बताया है, कि उनकी करेले की खेती की कमाई को देखी देखा फिलहाल उनके रिश्तेदार भी करेले की फसल उगाने लग गए हैं, जिससे उनको भी लाभ हाेने लगा है।

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करेला की खेती में कितनी पैदावार होती है

किसान संदीप वर्मा ने बताया है, कि वह आर्का हरित नामक करेले के बीज को लगभग 2 वर्षों से बो रहे हैं। इस बीज से निकलने वाले पेड़ से प्रत्येक बेल में करीब 50 फल तक अर्जित होते हैं। 

संदीप का कहना है, कि आर्का हरित करेले के बीज से निकलने वाला करेला बेहद लंबा एवं तकरीबन 100 ग्राम तक का होता है। करेला की 1 एकड़ भूमि में 50 क्विंटल तक की अच्छी पैदावार इससे अर्जित की जा सकती है।

विशेष बात यह है, कि इस करेला के फल में अत्यधिक बीज नहीं पाए जाते। इस वजह से इसको सब्जी के लिए बड़े शहरों में ज्यादा पसंद किया जाता है। 

किसान का कहना है, कि गर्म वातावरण करेले की खेती के लिए बेहद बेहतरीन माना गया है। खेत में समुचित जल निकासी की समुचित व्यवस्था के साथ इसे बलुई दोमट मृदा में आसानी से किया जा सकता है।

करेले की बुवाई इन दिनों में की जानी चाहिए

करेले की बिजाई करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त समय बारिश के दिनों में मई-जुलाई का पहला हफ्ता वहीं सर्दियों में जनवरी-फरवरी माना जाता है। 

किसान का कहना है, कि खेत की तैयारी करने के दौरान खेत में गोबर की खाद डालने के पश्चात कल्टीवेटर से कटवा कर उसकी बेहतरीन ढ़ंग से जुताई करके मृदा को भुरभुरा बनाते हुए उसमें पाटा लगवा कर एकसार कर लें। बुआई से पूर्व खेत में नालियां तैयार कर लें। 

साथ ही, इस बात का खास ख्याल रखें कि खेत में जलभराव की स्थिति ना बने मृदा को एकसार बनाते हुए खेत में दोनों ओर की नाली निर्मित की जाती हैं। 

साथ ही, खरपतवार को भी खेत से बाहर निकाल कर आग लगा दी जाती है अथवा उसको गहरी मृदा में दबा दिया जाता है।

करेले की बिजाई इस तरह करें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 1 एकड़ भूमि में करेला की बुवाई हेतु तकरीबन 600 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। करेले के बीजों की बुवाई करने के लिए 2 से 3 इंच की गहराई पर बोया जाता है। 

साथ ही, नाली से नाली का फासला तकरीबन 2 मीटर और पौधों का फासला करीब 70 सेंटीमीटर होता है। बेल निकलने के पश्चात मचान पर उसे सही ढंग से चढ़ा दिया जाता है। 

करेले की पौध को बिमारियों एवं कीटों से बचाने के लिए किसान विशेषज्ञों से सलाह मशवरा कर के कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं।

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किसान कुल खर्चे का 10 गुना मुनाफा उठा रहे हैं

किसान का कहना है, कि 1 एकड़ खेत में तकरीबन ₹30000 तक की लागत आसानी से आ जाती है। साथ ही, किसान को बेहतरीन मुनाफे के साथ करीब ₹300000 प्रति एकड़ का लाभ होता है। 

हरदोई के जिला उद्यान अधिकारी सुरेश कुमार का कहना है, कि जनपद में किसान करेले की खेती से काफी मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। किसानों को खेती के संबंध में समयानुसार उपयोगी जानकारी दी जा रही है। 

इसके साथ ही किसानों को अच्छे बीज एवं अनुदान भी प्रदान किए जा रहे हैं। किसानों के खेत में पहुँचकर किसानों की फसलों का निरीक्षण भी किया जा रहा है, इससे उनको अच्छे खरपतवार एवं कीट नियंत्रण से जुड़ी जानकारी प्रदान की जा रही है। 

हरदोई की जिला उद्यान अधिकारी सुरेश कुमार ने बताया कि हरदोई का करेला लखनऊ, कानपुर, शाहजहांपुर के अतिरिक्त दिल्ली, मध्य प्रदेश व बिहार तक पहुँच रहा है। इससे किसान को उसकी करेले की फसल का समुचित भाव अर्जित हो रहा है।

करेले बोने की इस शानदार विधि से किसान कर रहा लाखों का मुनाफा

करेले बोने की इस शानदार विधि से किसान कर रहा लाखों का मुनाफा

आजकल हर क्षेत्र में काफी आधुनिकीकरण देखने को मिला है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए करेला की खेती बेहद शानदार सिद्ध हो सकती है। 

दरअसल, जो करेला की खेती से प्रतिवर्ष 20 से 25 लाख रुपये की शानदार आमदनी कर रहे हैं। हम जिस सफल किसान की हम बात कर रहे हैं, वह उत्तर प्रदेश के कानुपर जनपद के सरसौल ब्लॉक के महुआ गांव के युवा किसान जितेंद्र सिंह है। 

यह पिछले 4 वर्षों से अपने खेत में करेले की उन्नत किस्मों की खेती (Cultivation of Varieties of bitter gourd) करते चले आ रहे हैं।

किसान जितेंद्र सिंह के अनुसार, पहले इनके इलाके के कृषक आवारा और जंगली जानवरों की वजह से अपनी फसलों की सुरक्षा व बचाव नहीं कर पाते हैं। 

क्योंकि, किसान अपने खेत में जिस भी फसलों की खेती करते थे, जानवर उन्हें चट कर जाते थे। ऐसे में युवा किसान जिंतेद्र सिंह ने अपने खेत में करेले की खेती करने के विषय में सोचा। क्योंकि, करेला खाने में काफी कड़वा होता है, जिसके कारण जानवर इसे नहीं खाते हैं।

करेला की खेती से संबंधित कुछ विशेष बातें इस प्रकार हैं ?  

किसानों के लिए करेला की खेती (Bitter Gourd Cultivation) से अच्छा मुनाफा पाने के लिए इसकी खेती जायद और खरीफ सीजन में करें। साथ ही, इसकी खेती के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है।

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किसान करेले की बुवाई (Sowing of Bitter Gourd) को दो सुगम तरीकों से कर सकते हैं। एक तो सीधे बीज के माध्यम से और दूसरा नर्सरी विधि के माध्यम से किसान करेले की बिजाई कर सकते हैं। 

गर आप करेले की खेती (Karele ki kheti) नदियों के किनारे वाले जमीन के हिस्से पर करते हैं, तो आप करेल की अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

करेले की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं ?

करेले की खेती से शानदार उपज हांसिल करने के लिए कृषकों को करेले की उन्नत किस्मों (Varieties of Bitter Gourd) को खेत में रोपना चाहिए। वैसे तो बाजार में करेले की विभिन्न किस्में उपलब्ध हैं। 

परंतु, आज हम कुछ विशेष किस्मों के बारे में बताऐंगे, जैसे कि- हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हरा और सोलन सफ़ेद, प्रिया को-1, एस डी यू- 1, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर-1, कल्याणपुर बारहमासी, काशी सुफल, काशी उर्वशी पूसा विशेष आदि करेला की उन्नत किस्में हैं। 

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किसान किस विधि से करेले की खेती कर रहा है ?

युवा किसान जितेंद्र सिंह अपने खेत में करेले की खेती ‘मचान विधि’ (Scaffolding Method) से करते हैं। इससे उन्हें काफी अधिक उत्पादन मिलती है। 

करेले के पौधे को मचान बनाकर उस पर चढ़ा देते हैं, जिससे बेल निरंतर विकास करती जाती है और मचान के तारों पर फैल जाती है। उन्होंने बताया कि उन्होंने खेत में मचान बनाने के लिए तार और लकड़ी अथवा बांस का इस्तेमाल किया जाता है। 

यह मचान काफी ऊंचा होता है। तुड़ाई के दौरान इसमें से बड़ी ही सुगमता से गुजरा जा सकता है। करेले की बेलें जितनी अधिक फैलती हैं उससे उतनी ही अधिक उपज हांसिल होती है। 

वे बीघा भर जमीन से से ही 50 क्विंटल तक उत्पादन उठा लेते हैं। उनका कहना है, कि मचान बनाने से न तो करेले के पौधे में गलन लगती है और ना ही बेलों को क्षति पहुँचती है।

करेले की खेती से कितनी आय की जा सकती है ?

करेले की खेती से काफी शानदार उत्पादन करने के लिए किसान को इसकी उन्नत किस्मों की खेती करनी चाहिए। जैसे कि उपरोक्त में बताया गया है, कि युवा किसान जितेंद्र सिंह पहले अपने खेत में कद्दू, लौकी और मिर्ची की खेती किया करते थे, 

जिसे निराश्रित पशु ज्यादा क्षति पहुंचाते थे। इसलिए उन्होंने करेले की खेती करने का निर्णय लिया है। वहीं, आज के समय में किसान जितेंद्र 15 एकड़ में करेले की खेती कर रहे हैं और शानदार मुनाफा उठा रहे हैं। 

जितेंद्र के मुताबिक, उनका करेला सामान्य तौर पर 20 से 25 रुपये किलो के भाव पर आसानी से बिक जाता है। साथ ही, बहुत बार करेला 30 रुपये किलो के हिसाब से भी बिक जाता है। अधिकांश व्यापारी खेत से ही करेला खरीदकर ले जाते हैं। 

उन्होंने यह भी बताया कि एक एकड़ खेत में बीज, उर्वरक, मचान तैयार करने के साथ-साथ अन्य कार्यों में 40 हजार रुपये की लागत आती है। वहीं, इससे उन्हें 1.5 लाख रूपये की आमदनी सरलता से हो जाती है। 

जितेंद्र सिंह तकरीबन 15 एकड़ में खेती करते हैं। ऐसे में यदि हिसाब-किताब लगाया जाए, तो वह एक सीजन में करेले की खेती से तकरीबन 15-20 लाख रुपये की आय कर लेते हैं। 

करेले की खेती करने का सही तरीका जानें

करेले की खेती करने का सही तरीका जानें

किसान करेले की खेती कर तगड़ा मुनाफा कमा सकते है, जानिये किस प्रकार करें करेले की खेती। सरकार द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के अलावा सब्जियों और फलों की खेती पर भी अधिक जोर दिया जा रहा है। 

किसानों की आय बढ़ाने हेतु सरकार द्वारा किसानों को खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। ताकि किसान खेती कर मुनाफा कमा सके और कृषि क्षेत्र का विकास किया जा सके। 

करेले के उत्पादन के लिए किस प्रकार की मिट्टी होनी चाहिए ?

करेले की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है, इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी को बेहतर माना जाता है। करेले की अधिक उपज के लिए अच्छे जल निकास वाली भूमि होनी चाहिए। 

इस मिट्टी के अलावा नदी किनारे की जलोढ़ मिट्टी को भी बेहतर माना जाता है। किसान उपाऊ मिट्टी में करेले की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकता है। 

करेले के उत्पादन के लिए उचित तापमान 

करेले की खेती के लिए ज्यादा तापमान की आवश्यकता नहीं रहती है। करेले के बेहतर उत्पादन के लिए नमी का होना आवश्यक है। 

करेले की खेती के लिए उचित तापमान 20 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए। करेले का उत्पादन नमी वाली भूमि में अक्सर बेहतर होता है। 

करेले की उन्नत किस्में 

किसान बेहतर और अधिक उत्पादन के लिए करेले की इन किस्मों का चयन कर सकते है। करेले की उन्नत किस्मों में सम्मिलित है, पूसा औषधि, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, बारहमासी, पूसा विशेष, पंजाब करेला-1, पूसा दो मौसमी, सोलन सफ़ेद, सोलन हरा, एस डी यू- 1, प्रिया को-1, कल्याणपुर सोना और पूसा शंकर-1। 

करेले की बुवाई का उचित समय 

करेले की बुवाई क्षेत्रों के अनुसार अलग अलग समय पर की जाती है। मैदानी क्षेत्रों में करेले की बुवाई जून से जुलाई के बीच में की जाती है। 

ऐसे ही गर्मी के मौसम में करेले की बुवाई जनवरी से मार्च के बीच में की जाती है और जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च से जून के बीच तक की जाती है। 

करेले की बुवाई का तरीका जानें 

करेले के बीजो की बुवाई का सही तरीका इस प्रकार है। करेले के बीजो की बुवाई दो प्रकार से की जा सकती है एक तो बीजो को सीधा खेत में बो कर और दूसरा करेले की नर्सरी तैयार करके भी करेले की बुवाई की जा सकती है। 

  1. करेले की बुवाई से पहले खेत की अच्छे से जुताई कर ले। खेत की जुताई करने के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल बना ले। 
  2. खेत में बनाई गई प्रत्येक क्यारी 2 फ़ीट की दूरी पर होनी चाहिए। 
  3. क्यारियों में बेजो की रोपाई करते वक्त बीज से बीज की दूरी 1 से 1.5 मीटर होनी चाहिए। 
  4. करेले के बीज को बोते समय , बीज को  2 से 2 .5 सेमी गहरायी पर बोना चाहिए। 
  5. बुवाई के एक दिन पहले बीज को पानी में भिगोकर रखे उसके बाद बीज को अच्छे से सूखा लेने के बाद उसकी बुवाई करनी चाहिए। 

करेले के खेत में सिंचाई कब करें 

करेले की खेती में वैसे सिंचाई की कम ही आवश्यकता होती है। करेले के खेत में समय समय पर हल्की सिंचाई करें और खेत में नमी का स्तर बने रहने दे। 

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जिस खेत में करेले की बुवाई का कार्य किया गया है वह अच्छे जल निकास वाली होनी चाहिए।  खेत में पानी का ठहराव नहीं होना चाहिए। खेत में पानी के रुकने से फसल खराब भी हो सकती है। 

करेले की फसल में कब करें नराई - गुड़ाई 

खेत में निराई गुड़ाई की आवश्यकता शुरुआत में होती है। करेले की फसल में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए समय समय पर नराई गुड़ाई करनी चाहिए। 

फसल में पहला पानी लगने के बाद खेत में अनावश्यक पौधे उगने लगते है जो फसल की उर्वरकता को कम कर देते है। ऐसे में समय पर ही खेत में से खरपतवार को उखाड़ कर खेत से दूर फेंक देना चाहिए। 

करेले की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती है 

करेले की फसल को तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता है। करेले की फसल बुवाई के 60 से 70 दिन बाद ही पककर तैयार हो जाती है। 

करेले के फल की तुड़ाई सुबह के वक्त करें, फलों को तोड़ते वक्त याद रहे डंठल की लम्बाई 2 सेंटीमीटर से अधिक होनी चाहिए इससे फल लम्बे समय तक ताजा बना रहता है।

करेला देगा नफा, आवारा पशु खफा - करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी

करेला देगा नफा, आवारा पशु खफा - करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी

करेले की खेती भारत में गर्मी और बरसात दोनों मौसम में की जाती है. करेले को शुगर के मरीजों के लिए राम बाण ओषधि बताया गया है, ये उच्च रक्तचाप वाले मरीज के लिए भी बहुत उपयोगी है. करेले को सब्जी, जूस और अचार के रूप में प्रयोग में लाया जाता है. इसको काट कर सुखा लेते है जिससे की इसकी सब्जी बेमौसम भी बनाई जा सकती है. सबसे अहम बात यह है कि इसकी खेती करना आवारा पशुओं की समस्या से भी मुक्ति का एक अच्छा जरिया है। 

करेले की फसल को जंगली एवं आवारा पशु भी कड़वा होने के कारण नहीं खाते। करेले का जूस, अचार, सब्जी बहुताय में प्रयोग में लाई जाने लगी है। इसके चलते इसकी मांग भी बढ़ रही है। करेले की खेती उन ​इलाकों में भी की जा सकती है जहां अवारा पशुओं का आतंक है। करेले को पशु कड़वाहट और गंध के चलते नहीं खाते। इसकी पूसा संस्थान ने कई उन्नत किस्में विकसित की हैं।

करेले के लिए खेत की तैयारी और उपयुक्त मिटटी

करेले के खेत के लिए दोमट बलुई मिटटी बहुत उपयोगी होती है इसको भुरभुरी मिटटी में भी किया जा सकता है. इसके खेत में पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे की करेले की बेल को पर्याप्त नमी के साथ सूखे का भी होना जरूरी है.जिससे की बेल गल न जाये। इसके खेत को पहले मिटटी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करके ऊपर से हेरों से जुताई करके सुहागा/ पाटा लगा देना चाहिए जिससे की खेत का लेवल सही बना रहे।

करेले की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

जैसा की सभी फसलों के लिए सादी गोबर की खाद बहुत उपयोगी होती है तो करेला के लिए भी हमें बनी हुई गोबर की खाद को पहली जुताई के बाद खेत में अच्छे से मिला दें बाद में नाइट्रोजन और दीमक की दवा मिला दें जिससे की पौधे में रोग न लगे। फूल आने के समय इथरेल 250 पी. पी. एम. सांद्रता का उपयोग करने से मादा फूलों की संख्या अपेक्षाकृत बढ़ जाती है,और परिणामस्वरूप उपज में भी वृद्धि होती है.250 पी. पी. एम. का घोल बनाने हेतु (0.5 मी. ली.) इथरेल प्रति लीटर पानी में घोलना चाहिए करेले की फसलों को सहारा  देना अत्यंत आवश्यक है. जिससे की इसकी बेल को ऊपर चढाने में मदद मिलती है उससे इसके फल पीले नहीं पड़ते हैं.

करेले की मुख्य किस्में

ग्रीन लांग, फैजाबाद स्माल, जोनपुरी, झलारी, सुपर कटाई, सफ़ेद लांग, ऑल सीजन, हिरकारी, भाग्य सुरूचि , मेघा –एफ 1, वरून –1 पूनम, तीजारावी, अमन नं.- 24, नन्हा क्र.–13

बीज की मात्रा और नर्सरी डालने का तरीका

खेत में बनाये हुए हर थाल या बैड में चारों तरफ 4–5 बीज 2–3 से. मी. गहराई पर बो देना चाहिए। गर्मी की फसल हेतु बीज को बुवाई से पूर्व 12–18 घंटे तक पानी में रखना चाहिए इससे बीज को उगने में आसानी रहती है. पौलिथिन बैग में एक बीज/प्रति बैग ही बोते है। बीज का अंकुरण न होने पर उसी बैग में दूसरा बीज पुन बुवाई कर देना चाहिए. इन फसलों में कतार से कतार की दूरी 1.5 मीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 60 से 120 से. मी. रखना चाहिए।

करेले के कीट, रोग और उसके उपचार

रेड बीटल

यह एक हानिकारक कीट है, जो कि करेला के पौधे पर प्रारम्भिक अवस्था पर आक्रमण करता है. यह कीट पत्तियों का भक्षण कर पौधे की बढ़वार को रोक देता है। इसकी सूंडी काफी खतरनाक होती है, जोकि करेला पौधे की जड़ों को काटकर फसल को नष्ट कर देती है।

इलाज एवं रोकथाम

रेड बीटल से करेला की फसल सुरक्षा हेतु पतंजलि निम्बादी कीट रक्षक का प्रयोग अत्यन्त प्रभावकारी है. 5 लीटर कीटरक्षक को 40 लीटर पानी में मिलाकर, सप्ताह में दो बार छिड़काव करने से रेड बीटल से फसल को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

पाउडरी मिल्ड्यू रोग

यह रोग करेला पर एरीसाइफी सिकोरेसिएटम की वजह से होता है. इस कवक की वजह से करेले की बेल एंव पत्तियों पर सफेद गोलाकार जाल फैल जाते हैं, जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं। इस रोग में पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं।

घरेलू या जैविक उपचार

इस रोग से करेला की फसल को सुरक्षित रखने के लिए 5 लीटर खट्टी छाछ में 2 लीटर गौमूत्र तथा 40 लीटर पानी मिलाकर, इस गोल का छिड़काव करते रहना चाहिए। प्रति सप्ताह एक छिड़काव के हिसाब से लगातार तीन सप्ताह तक छिड़काव करने से करेले की फसल पूरी तरह सुरक्षित रहती है.रोग की रोकथाम हेतु एक एकड़ फसल के लिए 10 लीटर गौमूत्र में 4 किलोग्राम आडू पत्ते एवं 4 किलोग्राम नीम के पत्ते व 2 किलोग्राम लहसुन को उबाल कर ठण्डा कर लें, 40 लीटर पानी में इसे मिलाकर छिड़काव करने से यह रोग पूरी तरह फसल से चला जाता है।

एंथ्रेक्वनोज रोग

करेला फसल में यह रोग सबसे ज्यादा पाया जाता है. इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों पर काले धब्बे बन जाते हैं, जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण क्रिया में असमर्थ हो जाता है. फलस्वरुप पौधे का विकास पूरी पूरी तरह से नहीं हो पाता।

करेले की फसल की तुड़ाई

फसल की तुड़ाई करते समय याद रखें की फल को एकदम हरे समय पर ही तोड़ें यानि कच्चा फल ही तोड़ें जिससे की मंडी में ले जाते समय आपके फल का रंग कुदरती इतना चमकदार होगा की सबसे पहले आपके फसल को लोग तरजीह देंगें। सामान्य किस्मों में पूसा विशेष किस्म प्रति हैक्टेयर करीब 200 कुंतल उपज देकर 70 हजार का शुद्ध मुनाफा दे जाती है। 

इसके अलावा पूसा मौसमी एवं पूसा औषधि भी तकरीबन इतना ही उत्पादन देती हैं। पूसा संस्थान की शंकर किस्मों में पूूूसा हाइब्रिड 1 450 कुंतल उपज एवं 90 हजार का लाभ देती है। इसके अलावा  पूसा हाइ​ब्रिड 2550 कुंतल उपज देकर सवा लाख रुपए तक शुद्ध लाभ दे जाती है। लगाने के लिए बीजों को गीले कपड़े में भिगोकर रखें। इसके बाज प्रभावी फफूंदनाशक से उपचारित करने के बाद बोएंं। 

बीजों को नाली बनाकर उसकी मेढों पर ही लगाएं ताकि पानी लगाने पर ज्यादा खर्चा न करना पड़े। अहम बात यह है कि करेले की बेल की लम्बाई और बढ़वार को ध्यान मेें रखते हुए ही एक नाली से दूसरी नाली के बीच की दूरी तय करें।

बागवानी की तरफ बढ़ रहा है किसानों का रुझान, जानिये क्यों?

बागवानी की तरफ बढ़ रहा है किसानों का रुझान, जानिये क्यों?

पारंपरिक खेती के बजाय अब किसान बागवानी(horticulture) खेती की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं, इसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन यदि मौजूदा सरकार की बात करें, तो सरकार बागवानी फसलों को बढ़ावा दे रही है।

देश की केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें बागवानी फसलों को लेकर खाद-बीज, सिंचाई, रखरखाव, कटाई के बाद फसलों के भंडारण पर खास जोर दे रही हैं। 

सरकारों ने बागवानी फ़सलों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए अपने कृषि वैज्ञानिकों को लगा रखा है, जो इस पर बेहद बारीकी से रिसर्च कर रहे हैं तथा नए-नए बीज और संकरित किस्मों का निर्माण कर रहे हैं। 

 इसको लेकर सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है ताकि किसान पारंपरिक खेती के माध्यम से खाद्यान्न फ़सलों की जगह फल, फूल, सब्जी और औषधीय पौधों की खेती पर ध्यान दें।

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खाद्यान्न फ़सलों की अपेक्षा बागवानी फसलों में हो रही है वृद्धि

सरकार ने फसलों के उत्पादन के आंकड़े जारी किये हैं जिसमें बताया है कि मौसम की अनिश्चितता और बीमारियों के प्रकोप के कारण गेहूं, धान, दलहन, तिलहन जैसी पारंपरिक फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली है। 

वहीं बागवानी फसलों की बात करें तो फसलों के विविधिकरण, नई तकनीकों, मशीनरी और नए तरीकों का प्रयोग करने से उत्पादन में दिनों दिन वृद्धि देखने को मिल रही है। साथ ही, बागवानी फसलों में प्राकृतिक आपदा और बीमारियों के प्रकोप का भी उतना असर नहीं पड़ता जितना खाद्यान्न उत्पादन करने वाली खेती में पड़ता है। 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2021-22 के दौरान पारम्परिक खाद्यान्न फसलों के द्वारा 315,72 मिलियन टन उत्पादन हुआ है। जबकि बागवानी फसलों के द्वारा साल 2021-22 के दौरान 341.63 मिलियन टन उत्पादन हुआ है।

साल 2021-22 के दौरान बागवानी फसलों के उत्पादन में 2.10% की वृद्धि हुई है, जबकि खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में इस दौरान कमी देखी गई है।

बागवानी फसलों से प्रदूषण में लगती है लगाम

आजकल धान-गेहूं जैसी पारंपरिक खाद्यान्न फसलों की खेती करने पर कटाई के बाद भारी मात्रा में अवशेष खेत में ही छोड़ दिए जाते हैं। 

ये अवशेष किसानों के किसी काम के नहीं होते, इसलिए खेत को फिर से तैयार करने के लिए उन अवशेषों में आग (stubble burning) लगाई जाती है, जिससे बड़ी मात्रा में वातावरण में प्रदूषण फैलता है और आम लोगों को उस प्रदूषण से भारी परेशानी होती है। 

इसके अलावा किसान पारंपरिक खेती में ढेरों रसायनों का उपयोग करते हैं जो मिट्टी के साथ-साथ पानी को भी प्रदूषित करते हैं। इसके विपरीत बागवानी फसलों की खेती किसान ज्यादातर जैविक विधि द्वारा करते हैं, जिसमें रसायनों की जगह जैविक खाद का इस्तेमाल होता है। 

इसके साथ ही बागवानी फसलों की खेती से उत्पन्न कचरा जानवरों को परोस दिया जाता है या जैविक खाद बनाने में इस्तेमाल कर लिया जाता है, जिससे प्रदूषण बढ़ने की संभावना नहीं रहती। 

बागवानी फसलों में आधुनिक खेती से किसानों की बढ़ी आमदनी

आजकल बागवानी फसलों में किसानों के द्वारा आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। अब भारतीय किसान फल, फूल, सब्जी और जड़ी-बूटियां उगाने के लिए प्लास्टिक मल्च, लो टनल, ग्रीन हाउस और हाइड्रोपॉनिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनके इस्तेमाल से उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी हुई है और लागत में भी कमी आई है।

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इसके अलावा बागवानी फसलें नकदी फसलें होती है। जो प्रतिदिन आसानी से बिक जातीं है और इनकी वजह से किसानों के पास पैसे का फ्लो बना रहता है। 

बागवानी फसलों की मदद से किसानों को रोज आमदनी होती है। बागवानी फसलों के फायदों को देखते हुए कई पढ़े लिखे युवा भी अब इस ओर आकर्षित हो रहे हैं।

गर्मियों के मौसम में ऐसे करें करेले की खेती, होगा ज्यादा मुनाफा

गर्मियों के मौसम में ऐसे करें करेले की खेती, होगा ज्यादा मुनाफा

सरकार लगातार किसानों की आय बढ़ाने पर फोकस कर रही है। जिसके तहत सब्जियों की फसल लगाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि किसनों के हाथ में नियमित रूप से पैसे आते रहें। इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। अब तो सरकार सब्जियों की खेती ले लिए किसानों को अनुदान भी उपलब्ध करवा रही है। गेहूं, चना, सरसों आदि की तुलना में सब्जियों की फसल जल्दी तैयार हो जाती है। ऐसे में उसी जमीन पर अगली फसल लगाने के लिए किसानों को समय मिल जाता है, जिससे किसान अच्छे से खेत तैयार करके किसी अन्य फसल को अपने खेत में लगा सकते हैं। वैसे तो बाजार में कई सब्जियां हैं जिनकी गर्मियों में भारी मांग रहती है। लेकिन करेले का एक अलग ही स्थान है। जिसकी खेती करके किसान भाई कम समय में अच्छा खासा लाभ काम सकते हैं। यह भी पढ़ें: करेला देगा नफा, आवारा पशु खफा – करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी करेला अपने औषधीय गुणों के कारण सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली सब्जी है। यह शुगर और डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान है। इसलिए डॉक्टर डायबिटीज के मरीजों को करेले का ज्यूस पीने की सलाह देते हैं। साथ ही यह शुगर कंट्रोल करने में भी सहायक होता है इसलिए डॉक्टर करेले की सब्जी खाने के लिए कहते हैं। करेला कई विटामिन और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसमें विटामिन ए, बी और सी की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता रहती है। इसके अलावा करेले में कैरोटीन, बीटाकैरोटीन, लूटीन, आइरन, जिंक, पोटैशियम, मैग्नीशियम और मैगनीज जैसे फ्लावोन्वाइड जैसे पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। इन पोषक तत्वों के कारण यह त्वचा रोग में बेहद लाभकारी होता है। इसके सेवन से पाचन शक्ति बढ़ती है, इसलिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी उच्च होती है। मोटापा कम करने के लिए और पीलिया ठीक करने के लिए भी करेले का सेवन किया जाता है।

ऐसे करें मिट्टी का चुनाव

करेले की खेती बलुई दोमट या दोमट मिट्टी में करना चाहिए। इसके साथ ही नदी किनारे की जलोढ़ मिट्टी भी इसके लिए उत्तम मानी गई है। करेले के खेत में उचित जल निकास की जरूरत होती है, नहीं तो पेड़ सड़ जाएंगे। करेले को गर्मियों से साथ-साथ वर्षा ऋतु में भी उगाया जा सकता है। अगर 30 से 40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होता है तो यह फसल के विकास के लिए सर्वोत्तम है। बीजों के जमाव के लिए खेत का तापमान 22 से 30 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए।

ऐसे करें खेत की तैयारी

खेत में करेले की फसल की बुवाई करने से पहले खेत की 2 से 3 बार अच्छे से जुताई कर लें। बुवाई से 20 दिन पहले 25-30 टन गोबर की खाद या कम्‍पोस्‍ट खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं। इसके बाद कतारबद्ध रूप से बेड बना लें। बुवाई के पहले मिट्टी के बेड के बगल से बनी नालियों में 50 किलोग्राम डीएपी, 50 किलो म्‍यूरेट आफ पोटास का मिश्रण प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। बुवाई के बाद यूरिया का भी प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए शाम का समय चुनें, ताकि उतने समय खेत में नमी बरकार रहे। बुवाई के 20 से 25 दिन के बाद 30 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर सकते हैं। इसके बाद करेले के पुष्‍पन व फलन के समय भी यूरिया का प्रयोग करना चाहिए। इससे पौधे को पोषण मिलता है और उत्पादन अधिक होता है।

ये हैं करेले की उन्नत किस्में

वैसे तो बाजार में करेले की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। जिनको आप बुवाई के के लिए चुन सकते हैं। इनमें कल्याणपुर बारहमासी, पूसा विशेष, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हरा और सोलन सफ़ेद, प्रिया को-1, एस डी यू- 1, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर-1 आदि किस्में शामिल हैं। जिन्हें किसान भाई अपने खेतों  में लगाना पसंद करते हैं।

ऐसे करें करेले की बुवाई

अब बाजार में ऐसी हाइब्रिड किस्में आ गई हैं जिससे करेले की खेती अब हर मौसम में की जाती है। आमतौर पर करेले को दो तरीकों से लगाया जाता है। पहला, खेत में सीधे बुवाई के माध्यम से और दूसरा, इसकी नर्सरी तैयार करके। नर्सरी के पौधे जब बोने लायक हो जाते हैं तब इनको खेत में स्थानांतरित कर दिया जाता है। बुवाई करने के लिए खेत में 2 फीट की दूरी पर बेड बना लें। इसके बाद बेड पर 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर बीजों की रोपाई करें। बीजों को हमेशा 2 से 2.5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। अगर करेले की पौध की रोपाई कर रहे हैं तो नाली से नाली की दूरी 2 मीटर रखनी चाहिए। साथ ही पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर और मिट्टी के बेड की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर होनी चाहिए। यह भी पढ़ें: गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें (Plant Care in Summer) एक एकड़ में बुवाई करने के लिए करेले के 500 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। अगर पौध के माध्यम से करेले की बुवाई करना है तो बीज की मात्रा में कमी भी की जा सकती है। बुवाई से पहले बीजों को बाविस्‍टीन के घोल में उपचारित करना चाहिए। इससे पेड़ों पर कीटों का आक्रमण नहीं होता है।

करेले की फसल की सुरक्षा और निराई गुड़ाई

करेला बेल के रूप में उगता है। ऐसे में करेले की बेल को सहारा देना जरूरी हो जाता है नहीं तो बेल खराब हो जाएगी। जब करेले का पौधा थोड़ी बड़ा हो जाए तो उसे लकड़ी या बांस का सहारा देना चाहिए। ताकि यह एक निश्चित दिशा में वृद्धि कर सके। इसके अलावा पौधे को रस्सी के सहारे से बांधा भी जा सकता है। करेले की फसल के शुरूआती समय में निराई गुड़ाई की जरूरत होती है। ऐसे में फसल की निराई गुड़ाई करें ताकि खेत में खरपतवार न पनपने पाएं। अगर शुरूआती दौर में खरपतवार पर नियंत्रण कर लेते हैं तो करेले की अच्छी फसल प्राप्त होती है।

करेले की फसल में सिंचाई

वैसे तो करेले की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। फिर भी खेत में हल्की सिंचाई करते रहें, ताकि खेत में नमी बरकरार रहे और पौधे सूखें नहीं। फूल व फल बनने की अवस्था में फसल की सिंचाई जरूर करें। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि खेत में पानी जमा न होने पाए। खेत में पानी जमा होने की स्थिति में पानी की उचित निकासी की व्यवस्था करें ताकि फसल खराब न होने पाए।

करेले की तुड़ाई

आमतौर पर करेले की फसल 60 यह 70 दिनों में तैयार हो जाती है। करेले के कठोर होने के पहले ही इसकी तुड़ाई कर लेना चाहिए। करेले को तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखें की करेले के डंठल की लंबाई 2 सेंटीमीटर से ज्यादा न हो। इससे करेले ज्यादा समय तक तरोताजा बने रहते हैं। करेले की फसल कि तुड़ाई हमेशा सुबह के समय करनी चाहिए।

करेले की फसल का उत्पादन

एक एकड़ की फसल में किसान भाई आराम से 50 से 60 क्विंटल तक करेले का उत्पादन कर सकते हैं। जबकि प्रति एकड़ इसकी खेती में मात्र 30 हजार रुपये की लागत आती है। इस हिसाब से बड़ी मात्रा में करेले की खेती करके किसान भाई ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सकते हैं।
किसान भाई इस विधि से करेले की खेती करने पर लाखों का मुनाफा उठा सकते हैं

किसान भाई इस विधि से करेले की खेती करने पर लाखों का मुनाफा उठा सकते हैं

करेला बागवानी के अंतर्गत आने वाली फसल है। विभिन्न राज्यों में करेले की खेती करने पर कृषकों को अनुदान भी दिया जाता है। करेले की विशेषता यह है, कि इसकी खेती चालू करने में खर्चा बहुत ही कम आता है। वहीं, मुनाफा काफी ज्यादा होता है। पूरे भारत में करेला की खेती की जाती है। करेले के अंदर भरपूर मात्रा में विटामिन्स और पोषक तत्व विघमान रहते हैं। इसी वजह से चिकित्सक करेले के रस का सेवन करने की सलाह देते हैं। करेले को लोग भुजिया और सब्जी, भरता के तौर पर उपयोग करते हैं। चिकित्सकों की माने तो करेले का जूस पीने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है। करेले में विटामिन ई, कैल्शियम, आयरन, विटामिन सी और विटामिन ए भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यही कारण है, कि इसकी मांग सालों रहती है। ऐसी स्थिति में किसान भाई आधुनिक विधि से इसका उत्पादन कर मोटी आमदनी कर सकते हैं।

करेला बागवानी के अंतर्गत आने वाली एक फसल है

करेला एक प्रकार की बागवानी फसल है। विभिन्न राज्यों में करेले का उत्पादन करने पर किसानों को अनुदान भी प्रदान किया जाता है। करेले की एक ऐसी विशेषता है, कि इसकी खेती चालू करने में बहुत कम खर्चा आता है। जबकि लाभ काफी ज्यादा होता है। यदि किसान भाई करेले की खेती करने की योजना बना रहे हैं, तो बलुई दोमट मृदा में ही इसकी बुवाई करें। क्योंकि बलुई दोमट मृदा करेले की फसल के लिए सबसे उपयुक्त मानी गई है। यदि आप चाहें तो नदी के किनारे भी करेले का उत्पादन कर सकते हैं। जलोढ़ मृदा में इसकी बेहतरीन पैदावार होती है।

करेले की खेती के लिए कितने डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है

करेले की फसल गर्म मौसम में तीव्रता के साथ विकास करती है। इसके लिए 20 डिग्री से 40 डिग्री तक का तापमान सबसे अच्छा माना गया है। अब ऐसी स्थिति में करेले की फसल को समुचित सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। हालाँकि, करेले की खेती वर्ष भर की जा सकती है। परंतु, वर्ष में तीन बार इसकी बुवाई की जाती है। यदि किसान भाई जनवरी से मार्च माह के मध्य इसकी बुवाई करते हैं, तो अप्रैल से करेले का उत्पादन शुरू हो जाएगा। यदि किसान भाई बारिश के मौसम में इसकी बुवाई करना चाहते हैं, तो जून से जुलाई माह इसके लिए अच्छा रहेगा। लेकिन, पहाड़ी क्षेत्रों के किसान मार्च से जून माह के मध्य करेले की बुवाई कर सकते हैं।

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बुवाई करने के 70 दिनों में फसल तोड़ने लायक तैयार हो जाती है

करेले की बुआई चालू करने से पूर्व खेत की बेहतर ढ़ंग से जुताई कर लें। उसके बाद खेत को एकसार कर लें। इसके बाद क्यारियां तैयार करके बीज की बुवाई करें। बीज सदैव 2 से 2 .5 सेमी गहराई में ही बोयें। विशेष बात यह है, कि बुवाई करने से पूर्व 24 घंटे तक बीज को पानी में भिगोकर रख दें। इससे बीज अतिशीघ्र अंकुरित होते हैं। जब करेले के पौधे बड़े हो जाएं, तब उसे लकड़ी अथवा बांस की मदद से उंचाई पर ले जाएं। इससे बेहतरीन उत्पादन हांसिल हो पाऐगा। इसी विधि को वर्टिकल फार्मिंग कहा जाता है। इस विधि से खेती करने पर बारिश होने की स्थिति में भी फसल की बर्बादी नहीं होती है। विशेष बात यह है, कि बुवाई करने के 70 दिनों के समयांतराल में फसल पककर तोड़ने हेतु तैयार हो जाती है।